हिन्द सागर, मुंबई। धर्म संसद के नाम पर आयोजित कार्यक्रमों के दौरान कट्टर हिंदुत्व की बातों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने असहमति जताई है। मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान मोहन भागवत ने कहा कि धर्म संसद से निकली बातें हिंदू और हिंदुत्व की परिभाषा नहीं थीं। अगर कोई बात किसी समय गुस्से में कही जाए तो वह हिंदुत्व नहीं है।
भागवत ने कहा कि आरएसएस और हिंदुत्व में विश्वास रखने वाले लोग इस तरह की बातों पर भरोसा नहीं करते हैं। दिसंबर 2021 में हरिद्वार में हुई धर्म संसद में मुसलमानों को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया गया था, जबकि रायपुर में हुई धर्म संसद में महात्मा गांधी को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की गई थी। जिसके बाद कालीचरण नाम के कथित संत को गिरफ्तार किया गया है। संघ प्रमुख इसी परिपेक्ष में अपने विचार रख रहे थे। संघ प्रमुख ने कहा कि वीर सावरकर ने हिंदू समुदाय की एकता और उसे संगठित करने की बात कही थी, लेकिन उन्होंने यह बात भगवद गीता का संदर्भ लेते हुए कही थी, किसी को खत्म करने या नुकसान पहुंचाने के परिप्रेक्ष्य में नहीं। भागवत ने आगे कहा, ‘यहां तक कि वीर सावरकर ने कहा था कि अगर हिंदू समुदाय एकजुट और संगठित हो जाता है तो वह भगवद् गीता के बारे में बोलेगा न कि किसी को खत्म करने या उसे नुकसान पहुंचाने के बारे में बोलेगा।’
हिंदुत्व वाली है हमारे संविधान की प्रकृति
क्या भारत ‘हिंदू राष्ट्र’ बनने की राह पर है? इस सवाल पर मोहन भागवत ने कहा- यह हिंदू राष्ट्र बनाने के बारे में नहीं है। भले ही इसे कोई स्वीकार करें या न करें। यह वही (हिंदू राष्ट्र) है। हमारे संविधान की प्रकृति हिंदुत्व वाली है। यह वैसी ही है जैसी कि देश की अखंडता की भावना। राष्ट्रीय अखंडता के लिए सामाजिक समानता कदापि जरूरी नहीं है। भिन्नता का मतलब अलगाव नहीं होता। संघ का विश्वास लोगों के मतभेद को दूर करने में है। इससे पैदा होने वाली एकता ज्यादा मजबूत होगी। यह कार्य हम हिंदुत्व के जरिए करना चाहते हैं। हमारी पांच हजार साल पुरानी परंपराएं सेकुलर हैं।