कुछलोग मिलीभगत कर लूट रहे हैं जनता की गाढी कमाई का पैसा
चतुर्भुजा शिवसागर पाण्डेय
हिन्द सागर भाईंदर। जब किसी कस्बे, नगर, राज्य तथा देश मे सत्ताधारी पक्ष व विपक्ष दोनों एक दूसरे के ऊपर किसी घोटाले को लेकर उंगली उठाकर, विरोध जताकर मामले को भूल जाएं तो समाज के जागरूक वर्ग को समझ जाना चाहिए कि जनता लुटी रही है।
हाल ही की घटना है 26 मई को मनपा पत्रकार कक्ष मे एक प्रेस वार्ता के दौरान ओवला माजीवाडा
विधानसभा के शिवसेना विधायक प्रताप सरनाईक ने भाजपा शाषित मिराभाईंदर की मनपा पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी ने नाला सफाई मे बडा घोटाला किया है। सरनाईक ने बोलते हुए कहा कि नाला सफाई का जब 20% काम भी नहीं हुआ था तभी सत्ता में आसीन लोग 90 % काम पूरा होने का दाव कर भुगतान करने की बात कर रहे हैं। सरनाईक ने नाला सफाई का ठेका लिए कंपनी मे किसी भाजपा नेता की हिस्सेदारी होने का आरोप लगाते हुए इस घोटाले के जाँच की मांग तत्कालीन आयुक्त चंद्रकांत डांगे से किया था। इस वार्ता के तीन ही दिन बाद मिराभाईंदर विधानसभा के भूतपूर्व भाजपा विधायक नरेंद्र मेहता ने अपने फेसबुक पेज पर कोविड-19 महामारी के दौरान बाँटे गए खिचड़ी मे घोटाले का आरोप लगाते हुए लिखा था कि शिवसेना के सह पर प्रताप फाउंडेशन द्वारा वितरित की गई खिचड़ी का मुल्य से ज्यादा रकम वसूल किया गया है। महामारी के दौरान शहर के अधिकाँश संस्थाओं ने मुफ्त भोजन वितरण किया था, ऐसे मे सिर्फ प्रताप फाउंडेशन को ही जिलाधिकारी कार्यालय द्वारा पैसा क्यों दिया गया, जबकि प्रताप फाउंडेशन को खिचड़ी बनाने के लिए चावल इत्यादि वस्तुएं सरकार ने मुहैया कराई थी, एक आकलन के अनुसार खिचड़ी के एक पैकेट की किमत 12 रुपये ही होता है तब पर भी प्रताप फाउंडेशन को सिर्फ खिचड़ी बनाने का 30 रुपये प्रति पैकेट के हिसाब से करोड़ों रुपए दिया गया।
हाँलाकि उन्होंने आपना यह पेज तीन दिन बाद हटा दिया था। लेकिन तब तक उनका अनुसरण करने वाले नगरसेवको ने आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू कर दिया। उस समय लगभग दस दिनो तक यह मुद्दा अपने चरम पर रहा, जिसके कारण भाईंदर मे राजनीतिक गर्मियां उफान पर थीं। दस दिन बाद जाने कौन सा वायरस भाईंदर की राजनीति में घुसा कि जो लोग एक दूसरे के घोटालों की जाँच करना चाहते थे वो अचानक इन मुद्दों से मुह छिपाते देखे जा रहे हैं। शायद राजनीति में इस वायरस को “साठगांठ” कहा जाता हैं।
पुछता है प्रहरी लोकतंत्र का..
अब लोकतंत्र के प्रहरियो के मन मे यह सवाल उठ रह है कि क्या इन दोनों कथित घोटालो की जाँच होगी या जनता के गाढी़ कमाई का पैसा सेना – भाजपा के साठगांठ के भेट चढेगा ?
शहर का हर व्यक्ति यह जानना चाहता है कि जिस घोटाले पर जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों द्वारा खुलासा किया गया, उसकी सच्चाई कब तक सामने आएगी।