हिन्द सागर। आजाद ,भारत के पहले स्टार खिलाड़ी ‘फ़्लाइंग सिख मिल्खा सिंह का शनिवार को पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। इसके साथ ही ट्रैक स्पर्धाओं ‘ में कई कीर्तिमान स्थापित करने वाले एक युग का अंत हो गया। संघर्षों के आगे घुटने टेकने की बजाय उन्होंने इनकी नींव पर ही उपलब्धियों की ऐसी अमर गाथा लिखी जिसने उन्हें भारतीय खेलों के इतिहास का – युगपुरुष बना दिया। मिल्खा सिंह 91 वर्ष के थे। कोविड-19 से जुडी जटिलताओं के कारण शुक्रवार की रात उनका निधन हो गया था। इसी हफ्ते उनकी पत्नी का भी निधन हुआ था। मिल्खा को खेल मंत्री किरण रीजीजू सहित कई हस्तियों की मौजूदगी में बेटे और स्टार गोल्फर जीव मिल्खा सिंह ने मुखाग्नि दी। इस महान धावक के सम्मान में पुलिस दल ने अपने हथियारों को उल्टा किया। मिल्खा को तोपों की सलामी भी दी गई।
पराजय में भी उपलब्धि
उन्होंने एशियाई खेलों में चार स्वर्ण पदक और 1958 के कॉमनवेल्थ गेम में भी एक स्वर्ण पदक जीता। मगर उनके कैरियर की सबसे बड़ी उपलब्धि वह दौड़ थी जिसमें वह हार गए। रोम ओलंपिक 1960 के 400 मीटर की दौड़ में वह चौथे स्थान पर रहे। उनकी रनिंग टाइमिंग 38 सालों तक स्वर्णिम इतिहास बनी रही।