हिन्द सागर, विषेश संवाददाता: किसी मंत्री को न्यायिक हिरासत में दो दिन रहने के बाद पद पर नहीं रहने देने का अनुरोध करने वाली एक जनहित याचिका को स्वीकार करने से सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इन्कार कर दिया।
कहा कि वह ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि इससे ‘शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत’ पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। यह सिद्धांत कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की शक्तियों को एक-दूसरे से अलग करता है।
नवाब मलिक को बर्खास्त करने की मांग
अश्विनी उपाध्याय द्वारा इस साल जून में दायर याचिका पर प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जेबी पार्डीवाला की पीठ ने सुनवाई की। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया गया था कि वह (तत्कालीन) उद्धव ठाकरे सरकार को नवाब मलिक को मंत्री पद से बर्खास्त करने का निर्देश दें। नवाब मलिक को मंत्री रहते न्यायिक हिरासत में जेल भेजा गया था।
सत्येंद्र जैन को भी हटाने की बात
अश्विनी उपाध्याय ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मंत्री सत्येंद्र जैन को भी हटाने का निर्देश देने का अनुरोध किया था। जैन फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं।अदालत ने कहा, हम इस तरीके से अयोग्य नहीं घोषित कर सकते हैं। किसी व्यक्ति को पद से नहीं हटा सकते हैं। अनुच्छेद 32 के तहत मिले क्षेत्राधिकार को देखते हुए हम ऐसा प्रविधान लागू नहीं कर सकते, जो बाध्यकारी कानून बन जाए और किसी को बाहर कर दिया जाए। अनुच्छेद 32 के तहत कोई व्यक्ति सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकता है। पीठ ने कहा, आपका विचार शानदार है। दुर्भाग्य से हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते।