दशहरा रैली पर शिंदे और उद्धव गुट का घमासान, शिवाजी पार्क का जाने पूरा इतिहास

हिन्द सागर, संवाददाता: बाम्बे हाई कोर्ट ने शवाजी पार्क में दशहरा सभा आयोजित करने की मांग को लेकर शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट द्वारा दायर याचिका को ख़ारिज करते हुए उद्धव ठाकरे गुट को पांच अक्तूबर को दशहरा रैली करने की इजाज़त दे दी है।

हाई कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों के आवेदन पर फ़ैसला लेने के मामले में नगर निगम ने अपनी ताक़त का ग़लत इस्तेमाल किया है.

कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा है कि उद्धव ठाकरे गुट दो अक्तूबर से लेकर छह अक्तूबर तक ग्राउंड में दशहरा रैली की तैयारी कर सकता है. हालांकि उन्हें बृहन्नमुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (बीएमसी) के नियमों को मानना होगा. कोर्ट ने ये भी कहा है कि इस दौरान क़ानून व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति न पैदा हो इसकी ज़िम्मेदारी भी पार्टी की होगी.

मुंबई के शिवाजी पार्क का ठाकरे परिवार से चार पीढ़ियों का नाता रहा है. पार्टी टूटने के बाद अब इसे लेकर शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट आपस में भिड़े हुए हैं.

शिवसेना के बनने के बाद से ही शिवाजी पार्क में उनकी दशहरा की सभाएं होती रही हैं. पहले शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे और फिर उद्धव ठाकरे वहां शिवसेना प्रमुख के तौर पर भाषण देते थे. लेकिन अब पार्टी में बग़ावत के बाद एकनाथ शिंदे अपने समर्थकों के साथ अलग हो चुके हैं और ये अलग गुट के तौर पर उनका पहला दशहरा है.

शिवसेना की बात होते ही एक आम मुंबईकर के ज़हन में दो बातें ज़रूर आती हैं. शिवसेना भवन के नाम से मशहूर एक पुरानी इमरात और दशहरे पर शिव सैनिकों से खचाखच भरे मैदान में भाषण देते बालासाहब ठाकरे.

कई घटनाओं का चश्मदीद शिवाजी पार्क

मुंबई का शिवाजी पार्क शिव सेना की हर महत्वपूर्ण घटना का चश्मदीद रहा है. दादर के पश्चिम में मराठी बस्तियों से घिरे 28 एकड़ के इस पार्क को पहले माहिम पार्क कहते थे. यहां आयोजित होने वाला शिवसेना का दशहरा मेला तो ख़ास है ही, इसके अलावा प्रकट उद्यान का गणेश मंदिर और समर्थ व्यायाम मंदिर का मल्लखंब भी बहुत मशहूर है. ये मैदान कई ख़ास क्रिकेट पारियों का भी गवाह रहा है.

शिवाजी पार्क चार पीढ़ियों ‘प्रबोधनकर’ केशव ठाकरे, बालासाहेब ठाकरे, उद्धव और आदित्य ठाकरे की वजह से इस परिवार के लिए ख़ास मायने रखता है.

प्रबोधनकर ठाकरे दादर इलाके में रहते थे. दादर में ही उन्होंने खांडके इमाकत से पहला सार्वजनिक नवरात्रि महोत्सव शुरू किया था. संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के दौरान उन्होंने शिवाजी पार्क में आयोजित बैठकों में भाग लिया था. संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन की याद में बनाया गया हॉल शिवाजी पार्क के पास ही मौजूद है.

शिवसेना की स्थापना भी शिवाजी पार्क इलाके में ठाकरे के पुराने घर ’77 ए रानाडे रोड’ में हुई थी. 13 अगस्त, 1960 को ‘मार्मिक’ मैगेज़ीन की शुरुआत भी यहीं से हुई थी.

शिवसेना का गठन 19 जून 1966 को हुआ. 30 अक्टूबर 1966 को इसी शिवाजी पार्क में उनकी पहली दशहरा सभा हुई और तब से यहां दशहरा मनाने की परंपरा जारी है.

‘जय महाराष्ट्र-दिस इज़ द हिस्ट्री ऑफ़ शिवसेना’ पुस्तक के लेखक और वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश अकोलकर कहते हैं, ”शिवसेना के गठन के बाद लंबे समय तक कोई जनसभा नहीं हुई. पार्टी कार्यकर्ता आते थे और घर पर मिलते थे. इसके लिए बाद में शिवाजी पार्क में एक सार्वजनिक बैठक आयोजित करने का फ़ैसला लिया गया”.

प्रकाश अकोलकर के मुताबिक़, उस वक्त ख़ुद बालासाहेब ठाकरे को संदेह था कि शिवाजी पार्क मैदान पूरा भर पाएगा या नहीं. इसलिए उनका मंच मैदान के बीचों बीच बनाया गया था. आमतौर पर ऐसे मैदान में मंच एक छोर पर बनाया जाता है. इसका मक़सद था कि मंच के सामने का छोटा-सा हिस्सा भी भर जाए तो भी काम चल जाएगा.

अकोलकर बताते हैं, ”लेकिन हक़ीक़त में मैदान में भारी भीड़ जुट गई. शिवसेना की दशहरा सभा अब तक इसी मैदान पर होती रही है.”

बालासाहेब ने इस शिवतीर्थ पर दशहरा रैली को संबोधित करते हुए कई बड़े एलान किए हैं. 1975 में उन्होंने इसी मैदान से देश में इंदिरा गांधी के शासनकाल में लगे आपातकाल को समर्थन देने का एलान किया था. बाद में 1985 में उन्होंने इसी मैदान से हिंदुत्व को लेकर शिवसेना के रुख़ की घोषणा की थी.

जानकार कहते हैं, ‘1978 के मुंबई महानगरपालिका चुनाव में शिवसेना को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था. उस वक़्त लग रहा था कि शिवसेना की जीत होगी. बाद में बालासाहेब ने शिवाजी पार्क में एक बैठक में कहा था, ”अगर आप (मुंबईकर) मुझ पर भरोसा नहीं करते हैं तो मैं शिवसेना छोड़ दूंगा. फिर 1985 के नगर निगम चुनाव में पहली बार शिवसेना अपने दम पर सत्ता में आई.”

उसके बाद हुई अगली बैठक में वरिष्ठ मौजूद थे. उस समय महानगरपालिका में कांगा नाम के एक कमिश्नर थे. बालासाहेब ने बैठक में कहा था कि अगर कांगा नहीं सुनते हैं तो शिवसैनिकों को ज़ोर देकर आवाज़ लगानी चाहिए.

1991 की रैली में उन्होंने एलान किया था कि किसी भी सूरत में मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में पाकिस्तान के साथ मैच नहीं होगा. हम जानते हैं कि उसके बाद क्या हुआ. शिशिर शिंदे, प्रभाकर शिंदे और कई शिवसैनिक वानखेड़े स्टेडियम में घुस गए और वहां की पिच खोदकर उस पर अलकतरा डाल दिया. इसकी वजह से वहां भारत-पाकिस्तान का क्रिकेट मैच नहीं हो पाया था.

2010 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने शिवाजी पार्क को साइलेंट ज़ोन में शामिल कर दिया था. बालासाहेब ने शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में इस फ़ैसले की आलोचना की थी. उसके बाद पार्टी को यहां सालाना रैली करने की अनुमति दे दी गई.

1995 में शिवसेना-भाजपा गठबंधन सत्ता में आई. उस समय बड़ा भाई रही शिवसेना ने 73 सीटें जीती थीं जबकि भाजपा को 65 सीटें मिली थीं. ज़ाहिर है मुख्यमंत्री का पद शिवसेना के पास गया और मनोहर जोशी मुख्यमंत्री चुने गए. उस समय शपथ ग्रहण समारोह राजभवन के बजाय शिवाजी पार्क में आयोजित किया गया था ताकि आम शिवसैनिक भी समारोह में शामिल हो सकें. उस समारोह में लाखों की तादाद में शिवसैनिक पहुंचे थे.

इसी शिवाजी पार्क की एक रैली में आदित्य ठाकरे को भारतीय युवा सेना की बागडोर भी सौंपी गई थी.

2012 में चर्चा थी कि बालासाहेब दशहरा मेले के लिए शिवतीर्थ आएंगे. हालांकि उस वक़्त उनकी तबीयत बिगड़ती जा रही थी. उस साल लाख़ों शिवसैनिक इस इरादे से शिवाजी पार्क पहुंचे थे कि यह बालासाहेब की उनकी आख़िरी मुलाक़ात हो सकती है. लेकिन बालासाहेब बैठक के लिए नहीं आ सके.

बालासाहेब की विदाई

उस साल कांपती आवाज़ में रिकॉर्डेड भाषण में बालासाहेब ने शिवाजी पार्क में मौजूद शिवसैनिकों से अपील की, ”मैं बस इतना ही कह सकता हूं कि आपने मेरा ख़्याल रखा और मैंने आपका. मेरा ख़्याल रखिए और साथ ही उद्धव का भी ख़्याल रखिए, आदित्य का भी ख़्याल रखिए और महाराष्ट्र को समृद्ध बनाइए.”

बालासाहेब की मृत्यु के बाद लाख शिवसैनिकों ने उसी मैदान में आंसुओं के साथ उनको विदाई दी थी. फ़िलहाल शिवाजी पार्क के एक हिस्से में जहां बालासाहेब का अंतिम संस्कार किया गया था, वहां उनका स्मारक है.

शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे का स्मारक अब महापौर के बंगले में बनेगा जो शिवाजी पार्क के बेहद क़रीब है.

इस शिवाजी पार्क के प्रवेश द्वार पर बालासाहेब की पत्नी मीना ताई ठाकरे की भी एक प्रतिमा है. उन्हें मुंबई में ‘मां’ कहा जाता था, .

कभी शिवसेना में युवा नेता के तौर पर सक्रिय रहे राज ठाकरे ने भी इसी शिवाजी पार्क में अपनी पार्टी की स्थापना की थी. इसी शिवाजी पार्क में उनकी ‘महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना’ की बैठकें भी होती हैं.

ठाकरे परिवार और शिवाजी पार्क

पत्रकार और ‘द कजिन्स ठाकरे: उद्धव, राज एंड द शैडो ऑफ़ देयर सेनाज़’ किताब के लेखक धवल कुलकर्णी कहते हैं, ”प्रबोधनकर ठाकरे दादर इलाक़े में रहते थे. बाद में बालासाहेब का परिवार मातोश्री में रहने के लिए दादर से कलानगर चला गया. लेकिन श्रीकांत ठाकरे शिवाजी पार्क इलाक़े में ही रहते थे और अक्सर उद्धव ठाकरे चाचा श्रीकांत के साथ रहा करते थे. जैसे राज और बालासाहेब क़रीब थे, वैसे ही उद्धव और श्रीकांत ठाकरे बहुत क़रीब थे.”

उद्धव ठाकरे को फ़ोटोग्राफी का जुनून उनके चाचा श्रीकांत ठाकरे से मिला है. बालासाहेब की शादी शिवाजी पार्क के पास महले जोशी बिल्डिंग के एक घर में हुई थी. उद्धव ठाकरे समेत सभी ठाकरे भाई-बहन शिवाजी पार्क इलाक़े के बालमोहन स्कूल से पढ़े हैं. इस इलाक़े और ठाकरे परिवार का ऐसा क़रीबी संबंध रहा है.

शिवाजी पार्क शिवतीर्थ कब बना ?

1925 में इस मैदान को ‘माहिम पार्क’ कहा जाता था. बाद में इसका नाम बदलकर शिवाजी पार्क कर दिया गया. आगे चलकर यहां शिवाजी महाराज की प्रतिमा स्थापित की गई. लेकिन आचार्य अत्रे ने इसे ‘शिवाजी पार्क’ शिवतीर्थ कहना शुरू किया था.

वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के दौरान उन्होंने इस मैदान को शिवतीर्थ कहना शुरू किया था. वहां लगे बैनरों पर लिखा होता था, ”आज शिवतीर्थ पर आचार्य अत्रे की जनसभा.”

हालांकि शिवसेना भी लगातार इस मैदान को ‘शिवतीर्थ’ कहती रही है, लेकिन बाक़ी राजनीतिक दल हमेशा इसे ‘शिवाजी पार्क’ कहते हैं.