संपादक की कलम से…
हिन्द सागर: ज्यादा पुरानी बात नहीं है, जब लेखकगण रोबोट्स के उदय पर किताबें लिख रहे थे और बता रहे थे कि किस तरह से रोबोट आने वाले समय में सबकी नौकरियां खा जाएंगे। यह अनुमान लगाया गया था कि ऑटोमेशन के चलते कम से कम अमेरिका में तो आधी से ज्यादा नौकरियां खतरे में आ सकती हैं। लेकिन हाल की रिपोर्ट्स कुछ और ही तस्वीर बयां करती हैं।
वे यह नहीं कहतीं कि रोबोट्स मनुष्यों की जगह ले लेंगे, बल्कि यह कहती हैं कि क्या वे जरा फुर्ती दिखाएंगे और दुनिया की इकोनॉमी को बचाएंगे, क्योंकि काम करने वालों की किल्लत हो रही है। आज दुनिया में बेरोजगारी की दर 4.5 प्रतिशत पर आ गई है, जो 1980 में वैश्विक रिकॉर्ड्स रखे जाने के बाद से अपने निम्नतम स्तर पर है। अमेरिका और यूके सहित विकसित देशों में कामगारों की किल्लत ऐतिहासिक ऊंचाइयों को छू रही है।
आज अमेरिका में 11.2 मिलियन पद खाली पड़े हैं, जबकि जॉब-हंटर्स केवल 5.6 मिलियन ही हैं। यह 1950 के दशक के बाद से अब तक का सबसे बड़ा अंतराल है। महामारी के दौरान जिन लाखों लोगों ने काम छोड़ा था, वे अभी तक लौटे नहीं हैं। इससे बॉसेस की बेसब्री बढ़ रही है। दबाव इसलिए भी अधिक है क्योंकि कामकाजी उम्र यानी 15 से 64 साल के लोगों की आबादी भी घट रही है, जबकि उम्रदराज लोगों की संख्या बढ़ रही है।
यह दशकों पूर्व हुए एक सामाजिक बदलाव का देरी से आया परिणाम है, जिसमें लोगों ने परिवार नियोजन के उपाय शुरू कर दिए थे और मेडिकल साइंस ने लोगों की औसत आयु बढ़ा दी थी। लगभग 40 देशों में आज यही स्थिति है, जहां कामकाजी आबादी घट रही है। इनमें अनेक ऐसे हैं, जो बड़ी आर्थिक ताकतें कहलाते हैं। अमेरिका में भी कमोबेश यही हालात हैं।
कामगारों की किल्लत से आर्थिक विकास मंद हो जाता है, इसलिए अधिकांश देशों को विकास के पथ पर चलते रहने के लिए अधिक से अधिक रोबोट्स की जरूरत होती। तकनीक को संदेह की नजर से देखने वाले चेतावनी देने से बाज नहीं आ रहे हैं। वे कहते हैं कि अब जब महामारी खत्म हो रही है तो लोग काम पर लौटेंगे और तब रोबोट एक बोझ बन जाएंगे। कामगारों की किल्लत से जूझ रहे देशों में सबसे ऊपर चीन, जापान, जर्मनी और दक्षिण कोरिया हैं।
इन सभी में 2030 तक हर साल कामकाजी आबादी में चार लाख की घटत का अनुमान है। यह संयोग नहीं है कि इन सभी में पहले ही रोबोट बहुत सारे काम करने लगे हैं और नए रोबोट काम पर लगाए जा रहे हैं। जापान के मैन्युफेक्चरर्स हर साल 10 हजार कामगारों के स्थान पर 400 रोबाेट नियुक्त कर रहे हैं। चीन तो बड़े पैमाने पर रोबोट मार्केट को सब्सिडाइज़्ड कर रहा है। उसका लक्ष्य है 2030 तक रोबोटों के आउटपुट को 20 प्रतिशत तक बढ़ाना। लेकिन बर्नस्टीन के विश्लेषकों का अनुमान है कि इस गति से भी रोबोट्स लेबर-फोर्स के सभी गड्ढे नहीं भर सकेंगे।
अगले तीन सालों में चीन 35 लाख कामगारों की किल्लत का सामना करने जा रहा है। अलबत्ता इस समस्या का सामना करने के दूसरे तरीके भी हैं, जैसे कि अभिभावकों को अधिक बच्चे पैदा करने को प्रेरित करने के लिए बोनस देना, महिलाओं को काम करने के लिए बढ़ावा देना, प्रवासियों का स्वागत करना या रिटायरमेंट की उम्र को बढ़ाना। लेकिन इन तमाम कदमों पर तीखे विरोधों का सामना करना पड़ता है। रोबोट तो वैसे भी एक विचित्र और अस्पष्ट किस्म का डर जगाते हैं।
लोग मशीनों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रति सहज नहीं हो पाए हैं। यह सच है कि अतीत के दूसरे इनोवेशंस की तरह रोबोट भी कुछ नौकरियों को समाप्त करेंगे और कुछ नौकरियां रचेंगे। मसलन गैस इंजिन ने घोड़ागाड़ियों को चलन से बाहर कर दिया था, लेकिन टैक्सी ड्राइवरों के लिए नई नौकरियां भी रची थीं।
आज अमेरिका में निर्मित होने वाले रोजगार के अवसरों में से एक तिहाई ऐसे हैं, जो 25 साल पहले अस्तित्व में नहीं थे। 1950 के दशक से ही पूर्वानुमान लगाए जा रहे हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस 20 साल में सबकुछ पर कब्जा जमाने वाली है, पर अभी तक ऐसा नहीं हुआ है। हम यह सुनते आ रहे हैं कि स्वत:चालित वाहन ट्रक ड्राइवरों को बेरोजगार कर देंगे जिनकी अमेरिका में बड़ी संख्या थी, जबकि अभी तो ड्राइवरों के ही टोटे हैं।
अमेरिका और यूके में कामगारों की किल्लत ऐतिहासिक ऊंचाइयों को छू रही है। आज अमेरिका में 11.2 मिलियन पद खाली पड़े हैं, जबकि जॉब-हंटर्स केवल 5.6 मिलियन ही हैं। चीन और जापान में कामकाजी आबादी तेजी से घट रही है।