कार्यकाल के आखिरी दिन CJI रमणा ने योगी आदित्यनाथ को दी बड़ी राहत

हिन्द सागर, संवाददाता: आज भारत के 48 वें मुख्य न्यायाधीश नुथलपति वेंकट रमणा के कार्यकाल का आखिरी दिन था. लाज़मी था कि इस दिन सारा ध्यान सुप्रीम कोर्ट पर रहता है. लेकिन तभी वरिष्ठ कांग्रेस नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद ने इस्तीफा दे दिया।

कांग्रेस से बाहर जाने के बाद आज़ाद का राजनैतिक भविष्य चाहे जैसा रहे, आज के रोज़ वो अपने खत से न्यूज़ मेकर ज़रूर बन गए.

अपने कार्यकाल के आखिरी दिन CJI रमणा फिर एक्शन मोड में रहे. कई मामलों में उन्होंने टिप्पणियां कीं और फैसले लिए.

हम यहां 2 हाई प्रोफाइल मामलों का ज़िक्र करेंगे.

1. फ्रीबीज़ माने रेवड़ियों पर बीते कई दिनों से सुनवाई चल रही थी. ये मामला अब लंबा खिंचने वाला है. CJI एनवी रमणा ने कहा,

”इस मामले में पक्षकारों द्वारा उठाए गए विषयों पर विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है. ये देखना होगा कि मामले में न्यायिक हस्तक्षेप की सीमा क्या होगी. ये भी देखना होगा कि न्यायालय द्वारा अगर कोई एक्सपर्ट कमेटी बनाई जाती है, तो इससे कोई फायदा होगा, या नहीं. कुछ पक्षकारों ने ”सुब्रह्मण्यम बालाजी” निर्णय पर पुनर्विचार की मांग की है. SC, सुब्रह्मण्यम बालाजी मामले में फैसला सुनाते हुए कह चुका है कि ऐसी योजनाओं को भ्रष्टाचार नहीं माना जा सकता. चूंकि मामला जटिल है और पूर्व में दिए एक फैसले को पलटने की मांग की गई है, हम इस मामले को 3 जजों की बेंच को सौंपते हैं.”

सुब्रह्मण्यम बालाजी मामला क्या है?

ये फैसला सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में सुनाया था. इसमें न्यायालय ने कहा था कि राज्य द्वारा पात्र नागरिकों को कलर टीवी, लैपटॉप आदि देना संविधान में निहित ”राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत” यानी डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी से जुड़ा हुआ है. अतः इसमें न्यायिक हस्तक्षेप संभव नहीं है.

वैसे आज की सुनवाई में एक ऐसी टिप्पणी आई, जिसको मामले के सारे प्रमुख पक्षकार अपनी अपनी जीत की तरह पेश कर सकते हैं. न्यायालय ने कहा कि चुनावी लोकतंत्र में असली ताकत मतदाता के पास ही होती है. लेकिन याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए इस प्रश्न पर भी विचार आवश्यक है कि जनकल्याण के नाम पर खज़ाने की सेहत को ताक पर रख दिया जाता है.

अगला हाई प्रोफाइल मामला था योगी आदित्यनाथ से जुड़ा. मामला 2007 का है, जब वो गोरखपुर से सांसद होते थे. 27 जनवरी को हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कुछ ऐसी बातें कहीं, जिन्हें भड़काऊ माना गया. इस संबंध में मामला भी दर्ज हुआ. अब नियम ये है कि सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के आरोपियों पर IPC की धारा 153 ए या IPC 295 ए के तहत मामला दर्ज किया जाता है. लेकिन न्यायालय इन मामलों का संज्ञान तभी ले सकता है, जब केंद्र या राज्य सरकार इस बाबात अनुशंसा जारी करे. हुआ ये कि मार्च 2017 में योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के सीएम बने. और 3 मई 2017 को उत्तर प्रदेश सरकार ने योगी आदित्यनाथ पर मुकदमा चलाने की मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया. और मामले में क्लोज़र रिपोर्ट फाइल कर दी.

तब याचिकाकर्ता परवेज़ परवाज़ ने इस फैसले को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी. परवेज़ ने सवाल उठाया था कि योगी आदित्यनाथ के सीएम रहते हुए यूपी सरकार योगी आदित्यनाथ के खिलाफ ही चल रहे मामले को वापस कैसे ले सकती है. और क्या योगी आदित्यनाथ ऐसा फैसला लेने के लिए अधिकृत थे? परवेज़ ने कहा कि ऐसी स्थिति में गवर्नर को निर्णय लेना चाहिए था. फरवरी 2018 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने परवेज़ की याचिका को खारिज कर दिया.

इसके बाद परवेज़ अपनी याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट चले गए. इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया कि सेंट्रल फॉरेंसिक साइंसेज़ लैबोरेट्री ने योगी के बयान की डीवीडी की जांच की थी. साथ ही उत्तर प्रदेश CID ने बयान को प्रथम दृष्टया आपत्तिजनक माना था और मुकदमा चलाने की अनुमति भी मांगी थी. जवाब में उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से कहा गया कि बयान की जो DVD दी गई थीं, उनके साथ छेड़खानी हुई थी. साथ ही इस मामले में मुख्यमंत्री ने फैसला नहीं लिया था. क्योंकि ये नौबत तब आती, जब गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय की राय अलग-अलग होती. लेकिन इस मामले में तो राय एक ही थी. इसीलिए ये मुद्दा महज़ अकैडमिक एक्सरसाइज़ बनकर रह गया है.

वैसे यहां गौर करने वाली बात ये है कि 2017 से अब तक योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ सूबे के गृहमंत्री भी हैं.
खैर, सुनवाई पर लौटते हैं. दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद CJI एनवी रमणा, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सीटी रवि कुमार की बेंच ने याचिका को रद्द कर दिया. माने योगी आदित्यनाथ को राहत दी. लेकिन कोर्ट ने दो बातें और कहीं.
>>ऐसे मामलों में नियम सिर्फ संज्ञान लेने पर रोक लगाते हैं, न कि पुलिस द्वारा मामला दर्ज करने और जांच करने पर.
>>इस मामले में मुकदमा चलाने की अनुमति देने के संबंध में कुछ कानूनी प्रश्न खड़े हुए हैं. इनपर भविष्य में सुनवाई हो सकती है, अगर उचित मामला सामने आए.

जस्टिस रमणा के कार्यकाल का आखिरी दिन इस लिहाज़ से भी खास था कि आज पहली बार सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही को लाइव स्ट्रीम किया गया. माने लाइव दिखाया गया. पहली बार आम भारतीयों ने देखा कि सुप्रीम कोर्ट में जज साहिबान कहां बैठते हैं. उनके सामने वकील कहां खड़े होते हैं. अब तक सुप्रीम कोर्ट की घटनाएं कानूनी मामलों की जानकारी देने वाली वेबसाइट्स, या लॉ बीट के रिपोर्टर ही बयान कर पाते थे. आपने वो रिपोर्टर देखे होंगे, जो सुप्रीम कोर्ट की पृष्ठभूमि में कैमरे पर बाइट देते हैं. लेकिन आज जब वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे CJI की विदाई के अवसर पर बोलते हुए भावुक हुए, तो ये क्षण सभी ने देखा. तब CJI रमणा, भावी CJI यूयू ललित के साथ ”सेरेमोनियल बेंच” पर आसीन थे. दवे ने CJI रमणा को ”सिटिज़न्स जज” कहा.

सुनवाई खत्म होने के बाद जस्टिस रमणा, सुप्रीम कोर्ट में बार असोसिएशन द्वारा आयोजित विदाई समारोह में शामिल हुए. इस दौरान बोलते हुए उन्होंने कहा,

”न्यायपालिका से लोगों की उम्मीद इतनी कमज़ोर भी नहीं, कि एक अनुचित फैसले से टूट जाए. कोई एक फैसला न्यायपालिका की परिभाषा की तरह पेश नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा खुद को बेहतर किया है.”

इस दौरान भावी CJI यूयू ललित भी मौजूद थे. उन्होंने 74 दिनों के अपने कार्यकाल का रोडमैप जारी किया. कानूनी मामलों की रिपोर्टिंग करने वाली वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक जस्टिस ललित ने तीन बड़े बदलाव लाने की बात कही –

1. मामलों की लिस्टिंग में पारदर्शिता लाना.
2. बेंचों के समक्ष ”अर्जेंट मैटर्स” को उठाने के लिए एक सिस्टम बनाना
3. पूरे साल कम से कम एक संविधान पीठ में सुनवाई करना.

जस्टिस ललित देश के 49 वें CJI होंगे. उन्होंने जो लक्ष्य तय किए हैं, उनमें से दो वाकई बहुत महत्वपूर्ण हैं. अर्जेंट मैटर्स की लिस्टिंग और संविधान पीठ के लिए जजों की उपलब्धता. देखना होगा उनके नेतृत्व में इस दिशा में कितना काम हो पाता है.

अब चलते हैं बड़ी खबर के दूसरे हिस्से की तरफ. जिसका संबंध है ग़ुलाम नबी आज़ाद से. दिल्ली का 5 साउथ एवेन्यू लेन. ये पता राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी गुलाम नबी आज़ाद का है. वो गुलाम नबी जिन्होंने अपनी जिंदगी के करीब 50 साल देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी यानी कांग्रेस को दिए. आज दोपहर चढ़ने से पहले एक खबर आई कि गुलाम नबी आज़ाद ने कांग्रेस के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है. इस खबर के साथ गुलाम नबी आज़ाद का कांग्रेस के साथ करीब आधी सदी का सफर थम गया.

आज ख़बरों की रेस में गुलाम नबी के इस्तीफे के साथ वो चिट्ठी भी चर्चा में रही जो उन्होंने सोनिया गांधी को भेजी. इस चिट्ठी में उन्होंने कांग्रेस की कार्यशैली पर सवाल तो उठाए ही साथ राहुल गांधी पर भी सीधे हमले बोले. गुलाम नबी आज़ाद ने चिट्ठी में क्या लिखा ये आगे बताएंगे सबसे पहले उनका अगला प्लान जान लीजिए जो उन्होंने अपने इस्तीफे के बाद इंडिया टुडे से साझा किए है. उन्होंने बताया कि वो आने वाले कुछ दिनों में जम्मू कश्मीर में अपनी नई पार्टी बनाएंगे. बाकी राष्ट्रीय स्तर की राजनीति के बारे में वो आगे विचार करेंगे.

अब बात पांच पन्नों की उस चिट्ठी की जिसमें गुलाम नबी आज़ाद ने कांग्रेस की मौजूदा हालात के लिए कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराया है. आजाद ने अपनी चिट्ठी में राहुल गांधी को लेकर नाराजगी जताई है. उन्होंने लिखा – दुर्भाग्य से राहुल गांधी के राजनीति में आने के बाद जब उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया था, उन्होंने कांग्रेस के कार्य करने के तौर-तरीकों को खत्म कर दिया. उन्होंने संपूर्ण सलाहकार तंत्र को ध्वस्त कर दिया. इसके साथ ही राहुल का प्रधानमंत्री द्वारा जारी किया गया अध्यादेश फाड़ना उनकी अपरिवक्ता दिखाता है. इस वजह से 2014 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा.

आजाद ने अपनी चिट्ठी में जिस अध्यादेश का जिक्र किया है वो साल 2013 के सितंबर महीने में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह लेकर आए थे. राहुल गांधी ने इस अध्यादेश को मीडिया के सामने फाड़कर फेंक दिया था। इसके लिए राहुल गांधी ने बेहद कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा था, ‘अध्यादेश पर मेरी राय है कि यह सरासर बकवास है और इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए.’

कांग्रेस सात सितंबर से भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने जा रही है. इसको लेकर भी आजाद ने लिखा कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से पहले पार्टी को ‘कांग्रेस जोड़ो यात्रा’ शुरू करनी चाहिए. इसके साथ ही गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस अध्यक्ष पद पर चुनाव न कराने को लेकर भी गांधी परिवार पर निशाना साधा है. उन्होंने अपनी चिट्ठी में लिखा है कि संगठन में किसी भी स्तर पर कहीं भी चुनाव नहीं हुआ. गुलाम नबी आजाद ने आरोप लगाया कि आज कांग्रेस रिमोट कंट्रोल मॉडल से चल रही है. राहुल गांधी के पीए और सुरक्षाकर्मी पार्टी के बारे में फैसला ले रहे हैं.

गुलाम नबी आजाद लंबे वक्त से कांग्रेस से नाराज थे. वे कांग्रेस के नाराज नेताओं के जी-23 गुट में भी शामिल थे. जी-23 गुट कांग्रेस में लगातार कई बदलाव की मांग करता रहा है. गुलाम नबी ने इस ग्रुप का जिक्र भी अपनी चिट्ठी में किया उन्होंने लिखा कि-

‘इस ग्रुप की हमेशा अनदेखी की गई और बेइज्जती भी. पार्टी की कमजोरियों पर ध्यान दिलाने के लिए पत्र लिखने वाले 23 नेताओं को अपशब्द कहे गए, उन्हें अपमानित किया गया, नीचा दिखाया गया. कांग्रेस की स्थिति अब ऐसे मोड़ पर पहुंच गई है, जहां से वापसी करना नामुमकिन है.’

गुलाम नबी आजाद लंबे वक्त से कांग्रेस से नाराज बताए जा रहे थे. उनकी नाराजगी करीब 10 दिन पहले भी खुलकर सामने आई थी, जब उनको सोनिया ने जम्मू कश्मीर चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया था इसके कुछ घंटो के बाद ही आजाद ने पद से इस्तीफा दे दिया था. इस मनमुटाव की शुरुआत पिछले साल फरवरी से हुई जब उनके राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने वाला था. इसके बाद चर्चा थी कि कांग्रेस उन्हें फिर किसी और राज्य से राज्यसभा भेज सकती है. हालांकि, उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा गया. कांग्रेस ने जब गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा नहीं भेजा था, तो उन्होंने और उनके समर्थकों ने जम्मू कश्मीर में कई रैलियां की थीं. इसके बाद उन्हें जम्मू कश्मीर में कांग्रेस का सीएम पद का उम्मीदवार बनाने की मांग उठी थी. कहा तो ये भी जाता है कि कुछ वक्त पहले जम्मू कश्मीर में पार्टी के संगठनात्मक बदलाव के दौरान उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए जो नाम सुझाए थे पार्टी ने उस पर भी विचार नहीं किया था. सिर्फ इतना ही नहीं जम्मू कश्मीर में कमेटी के गठन के वक्त भी गुलाम नबी आजाद की सलाह नहीं ली गई. इन कमेटियों में आजाद के विरोधी गुट के नेताओं को भी जगह दी गई.

अब भले ही भले ही गुलाम नबी आजाद नई पार्टी बनाने की बात कर रहे हैं लेकिन कांग्रेस को यकीन है कि उनके इस्तीफे के पीछे कहीं न कहीं बीजेपी के साथ उनका दोस्ती वाला रिश्ता है. कांग्रेस नेता अजय माकन ने गुलाम नबी आजाद पर हमला बोल. माकन जो बोलना चाहते हैं वो बात कांग्रेस सांसद जयराम नरेश के इस ट्वीट से साफ हो जाएगी जिसमें लिखा है-

जिस व्यक्ति को कांग्रेस नेतृत्व ने सबसे ज़्यादा सम्मान दिया, उसी व्यक्ति ने कांग्रेस नेतृत्व पर व्यक्तिगत आक्रमण करके अपने असली चरित्र को दर्शाया है। पहले संसद में मोदी के आंसू, फिर पद्म विभूषण, फिर मकान का एक्सटेंशन. यह संयोग नहीं सहयोग है !’

जयराम नरेश ने अपने जिस ट्वीट में पीएम मोदी के आंसू की बात की है वो वाक्या पिछले साल फरवरी का है. जब गुलाम नबी आजाद की राज्यसभा से विदाई वाले दिन पीएम मोदी भावुक हो गए थे.

कांग्रेस के कई नेता आजाद के इस्तीफे के पीछे बीजेपी का हाथ बता रहे हैं लेकिन कुछ नेता ऐसे भी हैं जिनका ये मानना है आजाद ने इस्तीफे का कदम मजबूरी में उठाया. गुलाम नबी आजाद का इस्तीफा कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा झटका है. बीजेपी के नेता कांग्रेस की हालत वेंटिलेटर पर बता रहे हैं.

मुख्तार अब्बास नकवी का कहना है कि कांग्रेस में पलायन प्रोग्राम चल रहा है. वो ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि पिछले कुछ वक्त से कांग्रेस के कई बड़े नेता पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं. उनमें से कुछ बड़े नामों पर नज़र डालिए-
हार्दिक पटेल, सुनील जाखड़, अश्विनी कुमार, आरपीएन सिंह, कपिल सिब्बल, कुलदीप बिश्नोई, राजू परमार, नरेश रावल, सर्वन दासोजू, जयवीर शेरगिल और अब गुलाम नबी आजाद.

ये वो नाम हैं जिन्होंने हाल फिलहाल कांग्रेस का साथ छोड़ा है. इनमें से गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे को कांग्रेस के लिए बहुत बड़े नुकसान के तौर पर देखा जा रहा है. आजाद के इस्तीफे के दिन ही इसकी झलक भी मिल गई. आजाद जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.

राज्य में उनके पास समर्थकों की फौज है. आजाद के इस्तीफे के तुरंत बाद जम्मू कश्मीर के कई नेताओं ने कांग्रेस छोड़ दी. पार्टी छोड़ने वालों में वो 5 विधायक भी हैं जो भंग की गई विधानसभा के सदस्य थे. उनके अलावा कांग्रेस नेता सलमान निजामी ने भी इस्तीफा दे दिया है. उनका आरोप है कि चुनाव समिति बन गई लेकिन उनसे पूछा तक नहीं गया. गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस छोड़ते वक्त अपनी चिट्ठी के जरिए राहुल गांधी की पॉलिटिकल इमेज को जिस तरह डैमेज किया है उसका फायदा भी विरोधी पार्टियां ज़रूर उठाएंगी.

अब बात गुलाम नबी आजाद के पॉलिटिकल करियर की. गुलाम नबी आजाद ने साल 1973 में भालेसा में ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के सचिव के रूप में अपना करियर शुरू किया था. उनके परफॉर्मेंस के चलते उन्हें 2 साल के अंदर जम्मू-कश्मीर प्रदेश युवा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. साल 1980 में आजाद अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने. इसके साथ ही 1980 में वे महाराष्ट्र के वाशिम लोकसभा क्षेत्र से सांसद बने. 1982 में इंदिरा सरकार में उन्हें कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्रालय के प्रभारी उपमंत्री बनाया गया.

आजाद 1984 में भी सांसद चुने गए. 1990-1996 के बीच महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद रहे. पीवी नरसिम्हा सरकार में उन्हें संसदीय मामलों और नागरिक उड्डयन मंत्रालय में काम किया. इस बीच आजाद जम्मू कश्मीर से राज्यसभा के लिए भी चुने गए. नवंबर 2005 में आजाद जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री भी बने. यूपीए के दूसरे कार्यकाल में आजाद को स्वास्थ्य मंत्री का पद भी मिला. साल 2014 में कांग्रेस विपक्ष में बैठी तो आजाद को राज्यसभा में विपक्ष का नेता नियुक्त किया गया.

तो कांग्रेस के सामने अब दो तरफा संकट है. एक तरफ कुछ अनुभवी नेता पार्टी छोड़ रहे हैं. क्योंकि पार्टी ”युवा” राहुल गांधी के तरीकों से चल रही है. दूसरी तरफ युवा नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, क्योंकि उन्हें करियर में कोई स्कोप नहीं नज़र आ रहा. ऐसे में पार्टी का भविष्य नया अध्यक्ष मिलने से भी कितना संवर पाएगा, समय ही बताएगा.