असम मे क्या है जनसंख्या विसफोट की सच्चाई

हिन्द सागर। अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़े एक सिविल सोसाइटी ग्रुप ने कहा है कि सरकारी योजनाओं के फ़ायदे के लिए दो बच्चों की नीति अपनाने वाले असम को अपने विकास के लक्ष्यों को पाने में मुश्किल होगी.

अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार एडवोकेटिंग रिप्रोडक्टिव चॉइस (एआरसी) ने कहा कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे यह मान लिया जाए कि देश में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति है.

2019-2020 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे ने स्पष्ट कर दिया है कि महिला और पुरुष बिना किसी जनसंख्या नियंत्रण नीति के छोटा परिवार चाहते हैं.

एआरसी 115 संगठनों का गठबंधन है, जो गर्भनिरोधक के चुनाव के अधिकार के साथ स्वास्थ्य को लेकर काम करता है.

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने 19 जून को कहा था कि चाय बागान मज़दूरों, अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को छोड़कर, जिनके दो से ज़्यादा बच्चे होंगे उन्हें क्रमशः राज्य सरकार की योजनाओं से वंचित किया जाएगा.

असम में जनसंख्या नियंत्रण नीति के तहत 2018 में असम पंचायत एक्ट, 1994 में संशोधन किया गया था. इस संशोधन के तहत पंचायत चुनाव लड़ने के लिए अधिकतम दो बच्चे, न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता और घरों में शौचालय का होना अनिवार्य कर दिया गया था. अब एक बार फिर से बीजेपी की सरकार ने एक नया क़दम उठाया है.

एआरसी का कहना है, ”असम में कुल प्रजनन दर 1.9 है जो कि राष्ट्रीय औसत दर 2.2 से भी कम है. NFHS-5 के डेटा के अनुसार असम में 15 से-49 साल की 77 फ़ीसदी विवाहित महिलाएं और 63 फ़ीसदी पुरुष ज़्यादा बच्चे नहीं चाहते हैं. ये पहले से ही परिवार बड़ा होने से रोकने के क़दम उठा रहे हैं. 80 फ़ीसदी से ज़्यादा महिलाएं और 79 फ़ीसदी पुरुष मानते हैं कि दो या उससे कम बच्चा ही परिवार का आदर्श आकार है. अभी असम में 11 फ़ीसदी विवाहित महिलाएं ही परिवार नियोजन से दूर हैं.

एआरसी ने कहा कि असम से बाहर जिन राज्यों में प्रजनन दर ज़्यादा है, वहाँ दो बच्चे वाली नीति के बारे में कुछ भी पता नहीं है. असम में बीजेपी के नेता वहाँ की जनसांख्यिकी परिवर्तन की बात करते हैं. असम में 40 फ़ीसदी मुसलमानों की आबादी है.