भारत में भक्ति चित्त सनातनियो को ओशो से जोड़ने के विराट कार्य को ओशो के नरसी! स्वामी विट्ठल ने किया है, वह अद्भुत है।
इतिहास गवाह है बुद्ध पुरुषों के देह छोड़ने के सैकड़ो साल बाद लोग उनको समझते हैं,पूजने लगते हैं! लेकिन ओशो के शिष्य स्वामी विट्ठल ने यह अंतराल बहुत कम करने के निमित्त बने,जब भी इसके बारे में चर्चा होगी स्वामी विट्ठल का जिक्र होगा ही!
अभी हम दमोह,जबलपुर, मैयर शारदा देवी , चित्रकूट, बागेश्वर धाम, खजुराहो आदि की यात्रा पर थे। देखा गया लाखों भारतीय मन सच्चिदानंद को अपने अंदर नहीं! कहीं दूर ढूंढ रहे हैं और उनके जीवन को ठगे जाने की पूरी संभावना है!
और भारत में ऐसे लोगों की संख्या करोड़ों में है!
गलतियां हमसे भी हुई है क्योंकि हमने ओशो को अमीरों का गुरु बनाकर रख दिया है।
आज ओशो के कॉर्पोरेट टाइप ध्यान शिविर लगते हैं,अगर करीब की जेब में रुपया नहीं है वह कितना भी आपके गुरु ओशो को प्रेम करता हो इसको एंट्री नहीं!
ओशो पर बनी अनेक धारणाओं को तोड़ने के लिए ओशो का नरसी स्वामी विट्ठल मुंबई में प्रेम और करुणा की मशाल लेकर खड़ा है।
आज 50 साल से आप देख ही रहे हैं पूरा जीवन गुरु के कार्य में लगा दिया है,अनुयानी बनाने के लिए नहीं, ध्यान,प्रेम,करुणा की ज्योत प्रज्ञा जगाने के लिए।
आज उनको आपके तन मन सहयोग की जरूरत है, ताकि आपके मास्टर ओशो की मशाल से और दीपक रोशन हो सके।
यह भारत है यहां की मन स्थिति के मुताबिक ही कभी-कभी वैसे महोत्सव जरूरी है।
दिवाली पर ऐसे प्रेम और करुणा के महा मिलन महोत्सव सात्विक संकल्पना कोई बिरला ही कर सकता है!
महोत्सव में तिलक लगाना, इत्र छिड़कना, मुमुक्षु का स्वागत कर ऑडिटोरियम में सीट पर बैठना, लिपट तक ले जाना, दूसरे फ्लोर पर कैंटीन तक ले जाना, वक्ताओं का स्वागत कर मंच तक ले आना, चाय, पानी, महाप्रसाद खर्च का हिसाब रखना आदि की व्यवस्था के लिए आपके तन मन धन का गुरु के काम में सदुपयोग हो इसी उम्मीद के साथ आपके फोन के इंतजार में आज इतना ही।
आपके अंदर बैठे परमात्मा को प्रणाम।
हमारा प्रणाम स्वीकार करे।
रमेश पाटीदार, मुंबई (आर्किटेक्ट स्वामी)