छत्तीसगढ़ के दन्तेवाड़ा जिले में स्थित है 3 हजार फीट ऊंचाई पर गणपति मंदिर

गणेश चतुर्थी पर, जाने छत्तीसगढ़ के दन्तेवाड़ा जिले के ढोलकल में दुर्गम पहाड़ी पर 3 हजार फीट ऊपर, न कोई मंदिर न गुंबद, खुले आकाश तले विराजे हैं गणपति महराज

हिन्द सागर, सुप्रिया पाण्डेय/दंतेवाड़ा छ.ग: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में स्थित भगवान गणपति का यह विशेष मंदिर बैलाडिला की ढोलकल पहाड़ी पर स्थित है। भगवान गणेश का यह मंदिर जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा से 13 किमी दूर पहाड़ी पर स्थित है।
प्राकृति का खुबसुरत नमूना छत्तीसगढ़ प्राकृतिक सुंदरता और आदिवासीयों के समृद्ध संस्कृति के साथ अपने गोद में कई रहस्य और ऐतिहासिक धरोहरों को संजोय हुए है। छत्तीसगढ़ में कई सारे प्राचिन मंदिर एवं प्रतिमाएं है जो विश्व भर में प्रसिद्ध है, साथ ही कई सारे मंदिर , स्थल है जो पौराणिक कथाओं से संबंधित है, उन्हीं में से एक है ढोलकल गणेश मंदिर , आइए जानते है इसका इतिहास

ढोलकल की गणेश प्रतिमा को ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है इस मूर्ति की ऊंचाई लगभग 3फीट और चौड़ाई लगभग 3.5 फीट है।
इस मूर्ति में गणेश जी ने अपने उपरी दाएं हाथ में फरसा और उपरी बाएं हाथ में अपना टूटा हुआ दांत पकड़े हुए है। निचले दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में मोदक पकड़े हुए है। यह ढ़ोलकल गणेश मंदिर अपने आप में ही एक रहस्य है क्योंकि यह दूर घने जंगल के बीच 3000 फीट की ऊंचाई में इस मूर्ति को स्थापित करने का कारण किसी को नही पता । इसलिए या एक रहस्य बना हुआ है।

ढोलकल मंदिर का पौराणिक इतिहास
परशुराम जी से हुआ था गणेश जी का युद्ध

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान गणेश की 3 फीट सुंदर पत्थर की मूर्ति लगभग 10 वीं और 11 वीं शताब्दी के बीच बनाईं गई थी।
इस संबंध में कथा यह है की , भगवान परशुराम भगवान से मिलने जाते है, तब भगवान शिव और माता पार्वती विश्राम कर रहे होते हैं और द्वारपाल गणेश होते है जिससे परशुराम जी गणेश जी मे युद्ध होता है जिससे परशुराम जी का फरसे के वार से उनका एक दांत आधा टूटकर इसी जगह पर गिर जाता हैं। तभी से गणेश जी को एकदंत कहा जाता है। और परशुराम जी का फरसा वहीं गिर जाता है तब से इस पहाड़ी के नीचे के गांव का नाम फऱसपाल पड़ गया।

गणेश जी की प्रतिमा का पुनर्स्थापना
सर्व प्रथम छिंदक नागवंशी राजाओं ने पहाड़ी पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की ।कुछ वर्ष पूर्व एक पत्रकार ने अपने फोटोग्राफ की मदद से ढोलकल गणेश मंदिर को लोगों से रुबरु कराया । जिसके बाद से यहां दूर दराज के लोग भगवान गणेश की प्रतिमा के दर्शन करने पहुंचने लगें। और मंदिर के अलावा खूबसूरत वादियों का लुफ्त उठाते है।

इस मंदिर को कुछ शरारती लोगों के द्वारा पहाड़ी से नीचे गिरा दिया था ऊंचाई से गिरने कि वजह से यह 56 टुकड़ो में टूट गया था जिसे बाद में स्थानियों और सरकारी कर्मचारियों ने मिलकर टुकड़ों को ढूंढने के बाद इक्कठा कर जोड़ा और गणेश जी की प्रतिमा को पुन: स्थापित किया गया। फरवरी 4 को प्रत्येक वर्ष ढोलकल का मेला आयोजित किया जाता है।