भारत में टैक्स

चाहे आप दुनिया में कहीं भी रहते हों, पर आपको स्थानीय सरकार को टैक्स का भुगतान करना होता है।* टैक्स कई प्रकार के होते हैं जैसे स्टेट टैक्स (राज्य कर), सेण्टर गवर्नमेंट टैक्स (केंद्र सरकार कर), डायरेक्ट टैक्स (प्रत्यक्ष कर), इन-डायरेक्ट टैक्स (अप्रत्यक्ष कर) इत्यादि। मुख्यता भारत में टैक्स को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया हैं – डायरेक्ट टैक्स और इन-डायरेक्ट टैक्स। यह इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार को टैक्स का भुगतान कैसे किया जा रहा है। निम्नलिखित लेख में हम हम उस टैक्स पर चर्चा करेंगे जिनका भुगतान एक भारतीय नागरिक द्वारा किया जाता है।

टैक्स क्या है
टैक्स शब्द लैटिन शब्द “टैक्सो” से आया है। एक टैक्स एक अनिवार्य शुल्क या वित्तीय शुल्क है जो सरकार द्वारा किसी व्यक्ति या संस्था पर राजस्व जुटाने के लिए लगाया जाता है। जमा हुए टैक्स की कुल राशि को विभिन्न सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए उपयोग किया जाता है। कानून के मुताबिक, खुद से या गलती से टैक्स भुगतान ना करने पर जुर्माना या सज़ा मिल सकती है।

टैक्स के प्रकार
व्यक्ति/ संगठन को विभिन्न तरीकों से टैक्स का भुगतान करना पड़ता है। टैक्स अधिकारियों द्वारा टैक्स भुगतान के तरीके के आधार पर, टैक्स को डायरेक्ट टैक्स और इन-डायरेक्ट टैक्स में बाटा जाता है। दोनों टैक्स की जानकारी निम्नलिखित है।

*डायरेक्ट टैक्स*
जैसा कि नाम से ही पता चलता है ये टैक्स करदाता (टैक्स देने वाला) द्वारा सीधे सरकार को दिया जाता है।
भारत में इस प्रकार के टैक्स के सबसे अच्छे उदाहरण इनकम टैक्स और वैल्थ टैक्स हैं।
सरकार की नज़र में, डायरेक्ट टैक्स से कुल टैक्स इनकम का अनुमान लगाना आसान होता है क्योंकि यह करदाताओं की इनकम से सीधा संबंध रखता है।

*इन-डायरेक्ट टैक्स*
इन-डायरेक्टटैक्स को अलग तरीके से जमा किया जाता है और ये टैक्स सामान और सेवाओं के उपयोगपर आधारित होते हैं।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इन-डायरेक्ट टैक्स का भुगतान सामान/ सेवाओं के उपभोक्ता सीधे सरकार को नहीं करते हैं।
सरकार सामान/ सेवा के विक्रेता(बेचने वाला) से इन-डायरेक्टटैक्स प्राप्त करती है।
विक्रेता, बदले में, सामान/ सेवा के खरीदार से टैक्स लेता है।
इन-डायरेक्टटैक्स के सामान्य उदाहरणों में सेल्स टैक्स, GST, VAT, आदि शामिल हैं।

Income Tax eFiling

टैक्स भरने के लाभ
मूलत: टैक्स वह राशि है जिस पर सरकार चलती है और अपने नागरिक को सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करती है। टैक्स का भुगतान करने के लाभ निम्नलिखित हैं।

आपका टैक्स भुगतान सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों के लिए सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं बिना किसी बाधा के चलती रहेंगी।
आप लोन या क्रेडिट कार्ड के लिए आवेदन करने के लिए अपने इनकम टैक्स रिटर्न दस्तावेजों का उपयोग कर सकते हैं।
इस टैक्स की राशि से सरकार अपने नागरिक के लिए बेहतर सुविधाओं और उपयोगिताओं को निधि दे सकती है जो बदले में लोगों के जीवन स्तर में सुधार करने में मदद करती है।
सरकार को बहुत सारे कार्य करने होते हैं और जिसके लिए धन की आवश्यकता होती है। *आपके धन का उपयोग सेनाओं, बुनियादी ढांचे के विकास, नागरिकों की सुरक्षा, प्रशासनिक सेवाओं आदि के लिए भी किया जाता है।*

*टैक्स प्रणाली में बदलाव*
सरकार ने 2017 में GST (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) पेश किया जो स्वतंत्र भारत में अब तक का सबसे अहम टैक्स सुधार है। इससे पहले, सरकारों ने विभिन्न सेवाओं का लाभ उठाने या विभिन्न वस्तुओं को खरीदने के लिए कई तरह के अलग-अलग टैक्स लगा रखे थे। टैक्स की प्रक्रिया कठिन थी और कुछ पेचीदा नियमों की वजह से कुछ लोग टैक्स से बच जाते थे। GST लागू होने के बाद से टैक्स चोरी करने वालों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

*टैक्स चोरी कानून व जुर्माना*
भारत सरकार ने टैक्स से संबंधित विभिन्न अधिनियम बनाए हैं और प्रत्येक नागरिक उन नियमों का पालन करने के लिए बाध्य है। टैक्स संबंधित विभिन्न अधिनियम का पालन ना करने पर लगाए गए कुछ दंड निम्नलिखित हैं:

●धारा 140A (1) के अनुसार, यदि एक असेसी (टैक्स देने वाले) आंशिक रूप से या पूर्ण रूप से मूल राशि या ब्याज पर टैक्स का भुगतान करने में विफल रहता है, तो उसे डिफॉल्टर माना जाएगा।
धारा 221 (1) के अनुसार,टैक्स अधिकारी बकाया राशि के बराबर जुर्माना लगा सकता है।

●धारा 271 (C) के तहत,यदि कोई असेसी इनकम को छुपाता है तो उसपर 100% से 300% का जुर्माना लगाया जा सकता है।

●यदि कोई डिफॉल्टर धारा 142 (1) या 143 (2) के तहत,नोटिस का जवाब नहीं देता है, तो टैक्स अधिकारी उसेको रिटर्न दाखिल करने या लिखित रूप में संपत्ति और लाइबिलिटी के सभी विवरण प्रस्तुत करने के लिए कह सकता है।
*इनकम टैक्स*
यह सबसे साधारण टैक्स है जो एक नागरिक सरकार को व्यक्तिगत रूप से चुकाता है। यह बहुत ही सरल है – आपकी इनकम का एक हिस्सा हर साल सरकार को टैक्स के रूप में देना होता है और इस धन का उपयोग सरकार द्वारा देश भर में विकास कार्यों के लिए किया जाता है। वर्ष 2015-16 में, सरकार द्वारा जमा कुल इनकम टैक्स 2.86 लाख करोड़ रुपए से अधिक था।

*इनकम टैक्स असेसी*
कोई भी व्यक्ति जो इनकम होने के कारण से टैक्स जमा करने के लिए उत्तरदायी है, एक इनकम टैक्स असेसी है। हालांकि, कुछ व्यक्ति जो इनकम होने के बावजूद भी टैक्स देने के लिए बाध्य नहीं होते हैं जैसे किसान आदि। इसके अतिरिक्त, एक असेसी कुछ स्थितियों में किसी अन्य व्यक्ति की ओर से टैक्स रिटर्न जमा करने के लिए बाध्य हो सकता है।

*इनकम टैक्स स्लैब*
सभी व्यक्तियों पर समान टैक्स लागू नहीं होता है, नियम के अनुसार आपकी आय जितनी अधिक है, आपको उतनी अधिक राशि का भुगतान करना होगा। यह सुनिश्चित करता है कि टैक्स की दरें और नियम एक समान होने के बजाय निष्पक्ष हों, सरकार आयकर स्लैब के उपयोग से टैक्स दर को निर्धारित करती है जिस पर प्रत्येक व्यक्ति इनकम टैक्स का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है। 60 वर्ष से कम आयु के भारतीय निवासियों के लिए वर्ष 2018-19 से टैक्स स्लैब दर निम्नलिखित है।

टेबल 1: वर्ष 2018-19 से 60 वर्ष से कम व्यक्तियों पर लागू टैक्स दरें:
कुल आय लागू दर
₹ 2.5 लाख से कम टैक्स माफ़
₹ 2.5 लाख से ₹ 5 लाख ₹ 2.5 लाख से अधिक राशि का 5%
₹ 5 लाख से  ₹ 10 लाख ₹ 12500 + (₹ 5 लाख से अधिक राशि पर 20%)
₹ 10 लाख से अधिक ₹ 12500 + ₹ 50000 + (₹ 10 लाख से अधिक राशि पर 30%)
इनकम टैक्स पर छूट
जिनकी आय 2.5 लाख रु. से अधिक है। वो इनकम टैक्स का भुगतान करने के लिए बाध्य हैं। हालांकि, टैक्स बचत के कुछ विकल्प हैं जिनका उपयोग व्यक्तियों द्वारा दिये जाने वाले टैक्स को कम करने के लिए किया जा सकता है। उन खर्च/ निवेश के उदाहरण जिनके बिनाह पर आप टैक्स माफ़ी के लिए दावा कर सकते हैं,  ELSS , म्यूचुअल फंड, PPF, EPF, FD, पोस्ट ऑफिस सेविंग स्कीम, जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा और आदि। इनके बारे में इनकम टैक्स अधिनियम, 1961 की धारा 80C और 80D में बताया गया है।

*TDS*
TDS को टैक्स के सबसे आम तरीकों में से एक माना जाता है, इसमें एक नौकरीपेशा व्यक्ति का टैक्स उसके वेतन में से काटकर नियोक्ता/ कम्पनी द्वारा सरकार को भुगतान किया जाता है। व्यक्ति द्वारा किये गए निवेश के बाद उस पर जितना टैक्स लागू होता है उसे नियोक्ता/ कंपनी द्वारा हर महीने वेतन से काटा जाता है। यदि टैक्स कटने के बाद, कोई व्यक्ति टैक्स माफ़ी के लिए निवेश दस्तावेज देता है और नियमों के मुताबिक, टैक्स छूट के लिए योग्य होता है तो उसके वेतन से काटा गया टैक्स वापस यानी रिफंड कर दिया जाता है। वेतन के अलावा, FD पर व RD के ब्याज से हुई आय पर भी TDS काटा जाता है। इस मामले में भी, इनकम रिटर्न (ITR) दाखिल करने के बाद व्यक्ति को रिफंड मिल सकता है।

*इनकम टैक्स रिफंड*
यदि टैक्स देने वाले किसी वयक्ति के नियोक्ता/ कम्पनी ने गलती से टैक्स प्रक्रिया में ज़्यादा TDS या ज़्यादा एडवांस टैक्स काट लिया है तो वह आयकर विभाग से आयकर रिफंड ले सकता है। हालाँकि, इस रिफंड का दावा केवल उस मामले में किया जा सकता है जब व्यक्ति ने ITR दाखिल किया हो।

*इनकम टैक्स रिटर्न*
प्रत्येक फाइनेंशियल वर्ष की समाप्ति के बाद, व्यक्तियों को चाहे वे नौकरीपेशा हों या स्व-नियोजित (अपना व्यवसाय करने वाला) हों, उन्हें अपना आयकर रिटर्न या ITR जमा करना आवश्यक है। यह दस्तावेज़ विभिन्न स्रोतों से हुई करदाता की वार्षिक इनकम, निवेश/ खर्च, कुल टैक्स भुगतान, TDS/ एडवांस टैक्स का भुगतान और अन्य डाटा इस पर निर्भर करता है कि ITR दाखिल करने वाले व्यक्ति नौकरीपेशा है या अपना व्यवसाय करता है। ITR जमा करने के बाद, आयकर विभाग एक एकनॉलेजमेंट नंबर जारी करता है और टैक्स अधिकारी रिफंड जारी करने से पहले ITR वैरीफाई करता है या व्यक्ति से कोई स्पष्टीकरण मांगता है।

*इनकम टैक्स नोटिस*
सरकार द्वारा भेजे गए किसी भी प्रकार के नोटिस की तरह ही इनकम टैक्स नोटिस को भी एक बुरा संकेत माना जाता है। जबकि यह आपके ITR से संबंधित किसी जानकारी की  वैरीफिकेशन के लिए भी हो सकता है। पहले इस तरह के नोटिस डाक प्रणाली का उपयोग करके भेजे जाते थे, लेकिन काफी वर्षों से, यह बदल गया है और ई-फाइलिंग के साथ, इनकम टैक्स विभाग ईमेल भेजता है जिसमें आपको अपने ई-फाइलिंग खाते पर लॉग-इन कर नोटिस देखने के लिए रखा जाता है। इस तरह के नोटिस को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए और निर्धारित तरीके से जवाब दिया जाना चाहिए। यदि विभाग को कई नोटिस भेजने के बाद आपसे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलती है, तो वे आपकी स्थिति की गंभीरता के आधार पर आपके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू कर सकते हैं या आप पर जुर्माना लगा सकते हैं।

*GST (वस्तु एवं सेवा कर)*
भारत की आज़ादी के बाद से अब तक के सबसे बड़े टैक्स सुधार को ध्यान में रखते हुए, GST जुलाई 2017, से लागू हुआ है। यह उन इन-डायरेक्ट टैक्स के एवज़ में बनाया गया है जो उत्पादों और सेवाओं पर लगते थे। GST, उन सभी इन-डायरेक्ट के बदले लागू होगा जिन्हें राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा लगाए जाता था। वर्तमान में वस्तुओं और सेवाओं पर 0%, 5%, 12%, 18% या 28% की दरों के अनुसार, GST लगाया जाता है, जबकि कुछ अन्य वस्तुओं/ सेवाओं को इस से छूट दी गई है।

*VAT (वैल्यू एडेड टैक्स)*
यह उन इन-डायरेक्ट टैक्स में से एक था जो भारत में GST से पहले लगाए जाते थे। पूरी दुनिया में बहुत आम है। जब भी बिक्री के लिए अंतिम वस्तु तैयार करने के लिए कच्चे माल का उपयोग होता है तब वैट लागू किया जाता है। यदि एक निश्चित वस्तु अपने अंतिम रूप में आने से पहले अर्ध-तैयार या कच्चे माल के रूप में कई बार खरीदी और बेची जाए, तो वैट प्रत्येक खरीद पर लागू होगा, बशर्ते हर बार वस्तु की कीमत बढ़ी हो।

*सेल्स टैक्स*
यह वस्तुओं या सेवाओं की बिक्री पर लगाया गया एक इन-डायरेक्ट टैक्स है, जो GST लागू होने से पहले लागू था। वैट के विपरीत, सेल्स टैक्स को एक विशेष टैक्स माना जाता है, क्योंकि ये हर बार वस्तु या सेवा की बिक्री पर लागू होता है। भले ही बिक्री के समय वस्तु का मूल्य ना बढ़ा हो।

*सर्विस टैक्स*
भारत में वित्त अधिनियम, 1994 के भाग के रूप में, सर्विस टैक्स को सेवा देने वालों द्वारा सरकार को दिया जाने वाले इन-डायरेक्ट टैक्स के रूप में परिभाषित किया गया था। सेवा देने वाले बाद में अपने ग्राहकों से यह टैक्स वसूलते हैं।  सामान्य उदाहरण जो ग्राहकों से सर्विस टैक्स वसूलते हैं, उनमें होटल, रेस्टोरेंट, मोबाइल कनेक्शन प्रदाता आदि शामिल हैं।

*एंट्री टैक्स*
एंट्री टैक्स एक राज्य द्वारा एक राज्य से दूसरे राज्य में माल की आवाजाही पर लगाया जाने वाला टैक्स है।
यह टैक्स डीलरों, कंपनियों, क्लबों, फर्मों, सोसायटी, औद्योगिक या वाणिज्यिक उपक्रम आदि पर लागू होता है।
वर्तमान व्यवस्था के अनुसार,GST आने के बाद एंट्री टैक्स को समाप्त कर दिया गया है।
*इंफास्ट्रक्चर सेस*
ग्यारहवीं अनुसूची में,विशिष्ट वस्तुओं पर केंद्र सरकार द्वारा इंफास्ट्रक्चर सेस लगाया जाता है।
छोटी पेट्रोल, LPG, CNG कार जैसे वाहन पर 1% व छोटी डीज़ल कारों पर 5% और उच्च इंजन क्षमता वाले वाहन पर 4% सेस लगता है।
इस सेस को मार्च 2016 में,देश में इंफ्रास्ट्रक्चर की वित्त व्यवस्था के लिए पेश किया गया था।
इस सेस को अब GST में शामिल कर लिया गया है।

*कृषि कल्याण सेस*
कृषि कल्याण सेस (KKC) को वित्त अधिनियम, 2015 के अध्याय 6 के प्रावधानों के अनुसार,2016 में पेश किया गया था।
सेस 5% की दर से सभी टैक्स योग्य सेवाओं पर लागू होता है।
इस के माध्यम से जमा राशि का उपयोग पूरी तरह से किसानों की स्थिति में सुधार और बुनियादी ढांचे और कृषि से संबंधित अन्य सेवाएं प्रदान करने के लिए किया जाएगा।
अब कृषि कल्याण सेस को GSTमें शामिल कर लिया गया है।

*स्वच्छ भारत सेस*
स्वच्छ भारत सेस सभी टैक्सयोग्य सेवाओं पर 5% की दर से लगाया जाता है।
इस से जमा हुई राशि काउद्देश्य स्वच्छ भारत पहल से संबंधित गतिविधियों को फंड करनाऔर देश में स्वच्छता को बढ़ावा देना है।
इस सेस को अब GST में शामिल कर लिया गया है और अलग से नहीं लगाया जाता है।

*रोड टैक्स*
सार्वजनिक सड़कों पर उपयोग के लिए सभी पहिया वाहनों पर रोड टैक्स लगाया जाता है।
यह राज्य सरकार द्वारा वाहन की खरीद पर लगाया जाता है।
निजी वाहन के लिए टैक्स एक बार होता है जबकि कमर्शियलवाहनों को रोड टैक्स का सालाना भुगतान करना होता है।
टैक्स की गणना इंजन की क्षमता, लागत मूल्य, वज़न, बैठने की क्षमता आदि पर निर्धारित है।
सरकार 1% से 15% तक की इंजन क्षमता के आधार पर 28% GST और एक अतिरिक्त सेस लेती है।
हालांकि, इलेक्ट्रिक कारों पर 12% रोडटैक्स लिया जाता है।

*टोल टैक्स*
टोल टैक्स राजमार्ग के एक विशेष हिस्से पर यात्रा करने के लिए अधिकारियों द्वारा लगाया गया टैक्स है।
हालांकि, टोल टैक्स दरें अलग-अलग टोल प्लाज़ा पर विभिन्न हैं, क्योंकि प्रत्येक टोल प्लाज़ा राजमार्ग के अलग-अलग हिस्से का रखरखाव करते हैं।
राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क (निर्धारण दर और संग्रह नियम, 2008) में उल्लिखित नीतियों के अनुसार,सभी टोल प्लाज़ा के लिए टोल दरें हर साल संशोधित की जाती हैं।
छूट लिस्ट में उल्लिखित VIP और गणमान्य व्यक्तियों को टोल टैक्स से छूट दी गई है।

*शिक्षा सेस*
शिक्षा सेस एक प्रकार का उपकर है जो टैक्स देने वाले की टैक्सराशि पर लगाया जाता है।
देश में शैक्षिक बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए शिक्षा सेस लिया जाता है।
व्यक्ति और साथ ही कॉर्पोरेट दोनों की इनकम पर 2% का अतिरिक्त शिक्षा सेस लगाया जाता है।
वर्ष 2008 में, तत्कालीन सरकार ने माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के लिए 1% का अतिरिक्त सेस लगाया था।
सरकार ने असेसमेंट वर्ष 2019-20 के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा सेस के नाम पर आयकर पर कुल 4% का सेस लगाया है।

*स्टांप ड्यूटी*
स्टांप ड्यूटी भारतीय स्टैम्प अधिनियम, 1899 की धारा 3 के तहत सरकार द्वारा एकत्र किया जाने वाला एक प्रकार का टैक्स है।
इसका भुगतान समय पर किया जाना चाहिए क्योंकि भुगतान में किसी भी तरहकी देरी दंड का कारण बन सकती है।
जिस भी दस्तावेज को कानूनी दस्तावेज के रूप में माना जाता है, उसके लिए स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान किया जाता है।
स्टांप ड्यूटी के भुगतान में देरी के कारण राशि का 2% से 200% तक जुर्माना लगता सकता है।
आमतौर पर, खरीदार को स्टांप ड्यूटी का भुगतान करना पड़ता है। हालांकि, संपत्ति के दस्तावेजों के मामले में, दोनों पक्षों के बीच स्टांप ड्यूटी की राशि विभाजित की जाती है।

*मनोरंजंन टैक्स*
मनोरंजन की गतिविधियों जैसे कि फिल्में, थिएटर, मनोरंजन पार्क, निजी त्योहार आदि पर लगाए गए टैक्स को मनोरंजन टैक्स कहते हैं।
यह राज्य सरकारों द्वारा लगाया जाता है और विभिन्न राज्यों के लिए दर अलग-अलग है।
मनोरंजन भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की लिस्ट 2 के अंतर्गत आता है जो एक राज्य को इस तरह का टैक्स लगाने का पूर्ण अधिकार देता है।
GST आने के बाद इसे हटा दिया गया है और फिल्मों, मनोरंजन पार्कों आदि पर 28% का टैक्स लगाया जाता है, जबकि थिएटर, नाटक, सर्कस और भारतीय शास्त्रीय शो पर 18% टैक्सलगाया जाता है।

*प्रॉपर्टी टैक्स*
रियल स्टेट प्रोजेक्ट के साथ भूमि पर लगाए जाने वाले टैक्स को प्रॉपर्टी टैक्स कहते हैं।
स्थानीय सरकार घर के वर्तमान मालिक पर टैक्स लगाती है। अलग-अलग राज्यों के लिए ये टैक्स अलग-अलग होता है और स्थानीय स्तर पर नगर निकाय को टैक्स जमा करने का अधिकार दिया जाता है।
टैक्स का भुगतान करने की जिम्मेदारी पूरी तरह से संपत्ति के मालिक पर होती है।
टैक्स दर संपत्ति के उपयोग पर भी निर्भर करती है, कि वह संपत्ति कमर्शियल कार्यों के लिए उपयोग की जा रही है या रहने के लिए।

*प्रोफेशनल टैक्स*
प्रोफेशनल टैक्स सभी व्यवसायों, कर्मचारियों, फ्रीलांसर, पेशेवरों, आदि पर लगाया जाता है, यदि इनकम एक निर्धारित सीमा से अधिक है।
यह राज्य सरकार द्वारा लगाया जाता है और विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है।
इनकम टैक्स अधिनियम1961 के अनुसार, इसे टैक्स योग्य आय से काटा जा सकता है।
कमर्शियल टैक्स विभाग इस टैक्स को जमा करता है और फिर राशि को स्थानीय नगर निकाय के खाते में जमा कर दिया जाता है।
यह कर GSTके लागू होने के बाद भी लागू है लेकिन अधिकतम 2,500 रु. तक ही टैक्स लगा सकते हैं।

*ब्याज टैक्स*
ब्याज टैक्स अधिनियम, 1974 के अनुसार किसी निवेश से कमाए गए ब्याज पर लगाए गए टैक्स को ब्याज टैक्स के रूप में जाना जाता है।
यह अधिनियम सभी अनुसूचित बैंकों के लिए लागू था जबकि सहकारी समितियों को इस टैक्स के दायरे से बाहर रखा गया था।
31 मार्च, वर्ष 2000 के बाद इस अधिनियम को बंद कर दिया गया था।
*एक्सपेंडिचर टैक्स*
एक्सपेंडिचर यानी खर्च, ये टैक्स किसी व्यक्ति द्वारा किये गए खर्चों पर लगाया जाता है,  खर्च टैक्स के दायरे में आता है।
इसे टैक्सअधिनियम, 1987 के अनुसार लागू किया गया था।
यह जम्मू और कश्मीर को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू है।
लागू टैक्स कुल खर्च का 10 – 15% है।

*गिफ्ट टैक्स*
किसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त उपहारपर “अन्य स्रोतों से प्राप्त आय” के तहत, गिफ्ट टैक्स लगाया जाता है।
गिफ्ट टैक्स का उल्लेख इनकम टैक्स अधिनियम, 1961 की धारा 56 (2) (x) के तहत किया गया है।
एक वर्ष में 50,000रु. से कम की राशि वाले उपहारों को टैक्स से छूट दी जाती है।
विवाह में प्राप्त उपहार और धन को टैक्स से मुक्त रखा गया है।
बिना किसी सेवा दिए 50,000 रू. के अतिरिक्त धन की कुल राशि पर 100% टैक्स लगाया जाता है।
*एक्साइज ड्यूटी*
केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी अधिनियम, 1985 के तहत लगाए गए इन-डायरेक्टटैक्स का एक रूप है।
यह उन वस्तुओं पर लगता है जो भारत में उपयोग के लिए देश में ही बनती हैं।
निर्माता टैक्स का भुगतान तब करता है जब माल बनकट बाज़ार में चला जाता है।
GST के लागू होने के बाद, इस टैक्स को हटा दिया गया है।

*कस्टम ड्यूटी*
वस्तुओं के एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट पर लगाया जाने वाला टैक्स कस्टम ड्यूटी कहलाता है।
यह मुख्य रूप से माल के आने और जाने पर नियंत्रित करता है।
घरेलू उद्योग की सुरक्षा के लिए यह समय-समय पर बदलता रहता है।
WTO, FTA,  आदि के तहत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर कस्टम ड्यूटी निर्भर करती है।

*कॉरपोरेट टैक्स*
यह घरेलू और विदेशी दोनों कंपनियों की आय पर लगाया जाने वाला टैक्स है और यह इनकम टैक्स अधिनियम, 1961 के तहत लगाया जाता है।
कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत रजिस्टर कंपनी की ”शुद्ध आय” पर कॉर्पोरेट टैक्स लगाया जाता है।
केवल भारत में इनकम पर कॉर्पोरेट टैक्स के तहत टैक्स लगाया जाता है।
घरेलू कंपनियों के लिए कॉर्पोरेट टैक्स की दर 30% है और विदेशी कंपनियों का 40%।
कंपनियों पर उनकी कमाई और राजस्व के आधार पर सर चार्ज भी लगाया जाता है।

*सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स*
मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों के माध्यम से प्रतिभूतियों के मूल्य पर लगाए गए टैक्स को सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स कहा जाता है।
यह डायरेक्ट टैक्स केंद्र सरकार द्वारा लगाया और वसूला जाता है।
स्टॉक, शेयर, बॉन्ड, डिबेंचर, डेरिवेटिव, इक्विटी ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड आदि जैसे उत्पादों पर ये टैक्स लगाया जाता है।
ऑफ-मार्केट ट्रांजैक्शन पर नहीं लगाया जाता है।
म्युचुअल फंड या ETF के रिडंप्शन पर लागू STT 0.025% है।
MF या ETF की बिक्री पर लगाया गया STT 0.001% है और यह केवल विक्रेता पर लगाया जाता है।

संबधित सवाल
प्रश्न. क्या सभी को टैक्स देना होता है ?
उत्तर: हाँ, सभी लोग किसी ना किसी टैक्स का भुगतान करते हैं। जबकि कुछ टैक्स जैसे कि इनकम टैक्स न्यूनतम छूट की सीमा के साथ आते हैं अर्थात यदि आप सालाना एक निश्चित राशि से कम कमाते हैं तो आपको इनकम टैक्स नहीं देना है, वही इन-डायरेक्ट टैक्स पर ये लागू नहीं होता है जैसे कि किसी ऐसी वस्तु को खरीदा जा रहा है जिसपर GST लागू होता है तो उसे कोई भी खरीदे उन्हें समान टैक्स देना होगा। उदाहरण: बिस्किट, कार आदि। *अंततः सभी को टैक्स देना होता है*।

प्रश्न. भारत में टैक्स रेट कौन तय करता है?
उत्तर: *टैक्स रेट को तय करने का अंतिम निर्णय भारत सरकार के पास है*। हालांकि, कई विभाग और निकाय हैं जो सरकार को टैक्स रेट और टैक्स का सुझाव देते हैं और उन्हें लागू करते हैं। कुछ प्रमुख हैं CBDT (केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड) और GST (माल और सेवा कर) परिषद।

प्रश्न. सरकारें टैक्स क्यों लगाती हैं?
उत्तर: *इनकम टैक्स और GST जैसे टैक्स लगाने का प्राथमिक लक्ष्य राजस्व है। इस राजस्व को बाद में जनता के लिए सार्वजनिक उपयोगिताओं, राष्ट्रीय रक्षा वित्त पोषण जन कल्याणकारी पहल जैसे अन्य क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है।*

प्रश्न. प्रोग्रेसिव टैक्स क्या है भारत में कौन सा टैक्स प्रोग्रेसिव है?
उत्तर: प्रोग्रेसिव टैक्स को सबसे अच्छी कर प्रणाली के रूप में परिभाषित किया गया है। जिसमें टैक्स आय के बढ़ने के साथ बढ़े। यह भारत में इनकम टैक्स के मामले में सच है क्योंकि टैक्स की दर व्यक्ति की इनकम बढ़ने के साथ बढ़ती है।