हिन्द सागर मीरा-भायंदर। मुंबई महानगरपालिका द्वारा ब्लैक लिस्टेड की सूची में डाली गई कंपनी को मीरा-भायंदर मनपा द्वारा 500 करोड़ रुपये सालाना के शहर की साफ-सफाई का ठेका दिए जाने की दिखाई जा रही तैयारियों को लेकर सवालिया निशान खड़े किए जाने लगे हैं। मिली जानकारी के अनुसार मेसर्स ग्लोबल वेस्ट मैनेजमेंट नामक ठेका कंपनी को कुल 8 वर्षों के लिए कचरे का ठेका दिए जाने का मनपा प्रशासन ने मसौदा तैयार कर लिया है, जिस पर मुहर भर लगने की देर है। इस ठेका कंपनी पर मनपा के कुछ अधिकारियों का वरदहस्त है, या फिर सत्ताधारी भाजपा का पारदर्शी कामकाज, यह तीखा सवाल शहर के नागरिकों द्वारा किया जा रहा है। गौरतलब हो कि मीरा-भायंदर मनपा द्वारा शहर के दैनंदिन के कचरे तथा भूमिगत गटर की साफ़-सफाई के लिए 1 मई वर्ष 2012 को मेसर्स ग्लोबल वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी को ठेका दिया था। पांच वर्ष के लिए दिए गए इस ठेके में तमाम शर्तों का उल्लंघन किया गया, जिसकी अनेक शिकायतें भी की गई थीं। इन शिकायतों के मद्देनजर मनपा प्रशासन द्वारा ठेकेदार के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई भी की गई। अप्रैल 2017 में उक्त ठेके की अवधि खत्म हो गई, बावजूद इसके आगे के तीन वर्षों के दौरान अवधि में वृद्धि करते हुए इसी ठेकेदार से साफ-सफाई का कार्य कराया जा रहा है। विदित हो कि विगत 10 अगस्त को आयोजित निविदा समिति की बैठक में मेसर्स ग्लोबल वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी को मुंबई मनपा द्वारा अयोग्य करार दिए जाने का मुद्दा भी उठा, लेकिन मनपा उपायुक्त डॉ संभाजी पानपट्टे ग्लोबल नामक ठेका कंपनी को पत्र लिखकर सात दिनों के भीतर अपना स्पष्टीकरण देने को कहा, लिहाजा डॉ संभाजी पानपट्टे द्वारा दिखाई गई इस मेहरबानी को भी अब शक के घेरे में खड़ा किया जाने लगा है।
निविदा प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही हमने मनपा आयुक्त को पत्र लिखकर अपनी भूमिका स्पष्ट कर दी है। मुंबई महानगरपालिका द्वारा ब्लैक लिस्टेड विवादित ग्लोबल वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी को पुनः कचरा उठाने के लिए ठेका मिले, इसके लिए उक्त कंपनी को मदद करने वाले संबंधित अधिकारियों पर भी कार्रवाई किए जाने की मांग हमने की है।
ग्लोबल वेस्ट मैनेजमेंट जैसी ब्लैक लिस्टेड कंपनी को 500 करोड़ रुपये का ठेका मिले, इसके लिए मनपा अधिकारियों के साथ ही मनपा के सभी राजनीतिक पार्टियों के नगरसेवकों ने “तेरी भी चुप, मेरी भी चुप” की भूमिका अपना रखी है, जिससे सभी पर संदेह की ऊंगली उठना स्वाभाविक है। कचरा प्रबंधन के लिए जब प्रतिवर्ष बजट में प्रावधान किया जाता है, तो एक अयोग्य करार दिए गए ठेकेदार को अगले आठ वर्षों के लिए ठेका देने में क्यों इतनी दिलचस्पी दिखाई जा रही है। किसी ठेकेदार के कार्यों को देखने के बाद ही साल दर साल ठेका दिया जाना चाहिए। आठ वर्षों के लंबे ठेके में मनमानी तथा भ्रष्टाचार की संभावनाओं से कतई इंकार नहीं किया जा सकता। करोड़ों की बंदरबाट में सबकी सांठगांठ का शक होना लाजिमी ही है।