हिन्ज्ञाद सागर ब्यूरो। वैज्ञानिक और डॉक्टर लगातार यह बात कह रहे हैं कि भारत के लोगों में कोरोना एंटीबॉडीज बहुत तेजी से विकसित हो रही हैं जबकि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में इतनी तेजी नहीं है। ऐसे में यह सोचने वाली बात है कि ज्यादातर पश्चिमी देश सुख-सुविधाओं और भोजन की गुणवत्ता के मामले में भारत से कहीं आगे हैं, तो फिर इम्यूनिटी के मामले में भारत कैसे आगे हो गया। खबरों के मुताबिक, भारत के हर चौथे व्यक्ति में कोरोना वायरस के संक्रमण से लड़नेवाली एंटीबॉडीज तैयार हैं।
आइए जानते हैं यह कैसे संभव हो पाया है, इसकी वजह क्या है।
शुरुआत में कोरोना वायरस का संक्रमण दिल्ली और मुंबई में बहुत तेजी से फैला था। हालांकि अभी पहले के मुकाबले यहां की हालत में काफी सुधार है। चूंकि दिल्ली की अधिकतर आबादी कोरोना की चपेट में आ चुकी है और बड़ी संख्या में लोग ठीक भी हो चुके हैं। ऐसे में यह माना जा रहा है कि उनमें कोरोना एंटीबॉडीज विकसित हो गई हैं। दिल्ली में हुए सीरो सर्वे के नतीजे भी कुछ ऐसा ही दिखाते हैं। पहले सीरो सर्वे के मुताबिक, टेस्ट हुए लोगों में से 23 फीसदी सीरो पॉजिटिव थे। दूसरे सीरो सर्वे के नतीजे इसी हफ्ते आने की उम्मीद है।
हालांकि ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत के लोगों में ही कोरोना एंटीबॉडीज विकसित हो रही हैं बल्कि अन्य देशों में भी ऐसा हो रहा होगा, लेकिन इससे संबंधित जांच नहीं की गई है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो विकसित देशों की तुलना में भारत जैसे विकासशील देशों में लोगों में एंटीबॉडीज तेजी से विकसित होंगी।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि दरअसल विकसित देशों में लोगों के पास जीवन-यापन की सुख-सुविधाएं ज्यादा हैं जबकि विकासशील देशों में इनके मुकाबले काफी कम हैं। इस वजह से विकासशील देशों में लोगों का सामना अलग-अलग तरह के वायरस से लगातार होता रहता है। इसके कारण उनके शरीर में अलग-अलग तरह के बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने की क्षमता पैदा हो जाती है।
फ्लू और इंफ्लूएंजा को ही मान लीजिए। ये दोनों ऐसी बीमारियां हैं, जिनके एंटीबॉडीज भारतीय लोगों शरीर में पहले से ही मौजूद हैं, क्योंकि उनका सामना अक्सर इस बीमारियों से होता रहता है। इनके लक्षण कुछ-कुछ कोरोना से मिलते-जुलते हैं। अब चूंकि भारत में लोगों का शरीर पहले से ही इम्यून है, इस वजह से वो कोरोना के सामान्य लक्षणों से जल्दी उबर जा रहे हैं। इसके अलावा थोड़ी-बहुत इम्यूनिटी की पूर्ति दवाओं से भी हो जाती है। यही वजह है कि भारत में बाकी देशों की अपेक्षा रिकवरी रेट अच्छा है।
हालांकि कोरोना वायरस चूंकि नई बीमारी है, इस वजह से इसके लिए अलग तरह की इम्यूनिटी की जरूरत है, जो कोरोना वायरस से लड़ सके। जो लोग इस बीमारी से ठीक हो चुके हैं, उनके अंदर कोरोना एंटीबॉडीज बन तो रही हैं, जो खुशी की बात है, लेकिन यह एक अवधि तक की शरीर में टिकी रह सकती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ज्यादातर मामलों में एंटीबॉडीज शरीर के अंदर 28 से 40 दिन तक ही रह सकती हैं, जो चिंता का विषय है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन और सीडीसी की रिपोर्ट्स के मुताबिक, किसी भी व्यक्ति के शरीर में मौजूद कोरोना एंटीबॉडीज का 90 फीसदी हिस्सा महज 28 दिनों के अंदर ही खत्म हो जाता है जबकि 93 फीसदी तक कोरोना एंटीबॉडीज 28 से 40 दिन के अंदर खत्म हो जाती है। इस स्थिति में वो लोग दोबारा भी कोरोना की चपेट में आ सकते हैं, अगर वो सतर्क न रहें और अपनी सेहत के प्रति लापरवाही न बरतें। कई बार यह सामने आ चुका है कि लोग दोबारा कोरोना से संक्रमित हो जा रहे हैं, जिसमें युवा से लेकर वृद्ध व्यक्ति तक शामिल हैं। इसलिए बेहतर है कि सावधानी बरतें, जिससे आप कोरोना से बचे रहें।