हिन्द सागर (ब्रिजेश त्रिपाठी)। किसी शायर की वह पंक्तियाँ आज हमें याद आ रही हैं जिसमें शायर लिखता है कि ‘‘प्यास लगी थी पर पानी में जहर था पीता तो मर जाता और न पीता तो भी मर जाता।’’ यही हालत आज लॉकडाउन के समय सरकार और जनता की है। कोरोना का संकट दिन प्रतिदिन बढ़ता गया और लॉकडाउन का दायरा भी सरकार बार बार बढ़ाती रही एक महीना पूरा होने से पूर्व ही नये लॉकडाउन के लगने की अटकलें लगायी जाने लगती है मार्च महीने से लॉकडाउन लग लग कर अभी जुलाई का महीना आ गया परन्तु सैकड़ों का आँकड़ा लाखों में पहँुच गया और हम इस महामारी के आँकड़े गिनते रहे और सोशल मीडिया पर सरकार को कटघरे में खड़े करते रहे। ये बात सच है कि सरकार ने लॉकडाउन के शुरुआती समय में जो सख्ती दिखाई वह आगे के लॉकडाउन में उडूनछूँ हो गयी और सरकारी अमला धीरे धीरे खत्म सा हो गया रोज रोज नये कानून पास होकर आने लगे कि ये दुकान आज खुलेगी वो दुकान नहीं खुलेगी आदि आदि न जाने कितने प्रकार के अलग बयान आते गये इससे आम जनता काफी परेशान हुई जनता ने भी कुछ कम नहीं इसे पैâलने में सहयोग दिया पहले तो लोग बाहर जाने से भी डरते थे पर धीरे धीरे लोगों को इसमें भी वही गंदी राजनैतिक अकुशलता की बूँ आने लगी परन्तु कहते हैं न की एक ही मँुह से हंसना और रोना दोनों एक साथ नहीं हो सकता परन्तु सरकार और जनता ने यही किया कोरोना को एक मरीज समाज के बहुत से लोगों को प्रभावित कर सकता है सोसायटी के लोगों में जागरूकता लाने में शायद हम चूक गये और सोशल डिस्टेनशिंग का पालन और सेनेटाइजर आदि के प्रयोग की आवश्यकता न समझाकर लोग एक ताबीज जैसा इसे लिए हुए घूम रहे हैं। एटीएम मशीनों के पैसों पर सेनेटाइजर लगाने के लिए बैंकों के पास रुपयों का अभाव सा दिखा बहुत कम एटीएम मशीनों के पास ऐसी सेफ्टी के बारे में कुछ विशेष निर्देश तक भी नहीं है सरकार को चाहिए कि या तो पूरी तरह से लॉकडाउन हटा कर फिर राम भरोसे काम चालू करे या फिर सख्ती से लॉकडाउन करके जल्द से जल्द इस बीमारी से निजात पाया जाय नहीं तो आने वाले दिनों में अर्थव्यवस्था कोरोना और जनता के बीच का ऐसा घमासान होगा कि जनता और अर्थव्यवस्था दोनों की हालत खराब हो जायेगी मेरी तो यही सरकार व प्रशासन से आग्रह है कि इस बीमारी का लॉकडाउन हो यदि एक उपाय है तो उसे सख्ती से लागू किया जाय तभी इस महामारी को समूल नष्ट किया जा सकता है अन्यथा यह लॉकडाउन अपने उद्देश्य से भटक जायेगा।